उत्तराखण्ड

दून में कोरोना के दो मामले आए सामने

देहरादून। दून में कोरोना के दो मामले आए हैं, पर अभी तक संक्रमित मरीजों के सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग नहीं हो पाई है। क्योंकि कोरोना पीड़ितों की संख्या कम और लैब में उतने सैंपल नहीं पहुंच रहे हैं जितना जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए जरूरत होती है।

दून मेडिकल कॉलेज की लैब में अभी मात्र एक ही सैंपल पहुंचा है। इस एकमात्र सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग में कई हजार रुपये का खर्च आएगा। बताया गया कि लैब में कर्मचारियों की भी कमी बनी हुई है। जीनोम सीक्वेंसिंग में विलंब का यह भी एक कारण है।

कोरोना के नए वेरिएंट की पहचान के लिए जिस जीनोम सीक्वेंसिंग की बात बार-बार की जा रही है, वह प्रक्रिया बहुत खर्चीली है। जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए आठ, 16, 40 व 80 सैंपल की किट आती है। दून मेडिकल कॉलेज में अभी आठ सैंपल वाली किट का उपयोग किया जा रहा है। यानी एक बार में आठ सैंपल को प्रोसेस किया जाता है।

सीक्वेंसिंग के पहले और बाद कई स्टेप्स

इसमें प्रति सैंपल करीब 10-12 हजार रुपये का खर्च आता है। आठ से कम सैंपल भी प्रोसेस किए जा सकते हैं, लेकिन एक सैंपल में भी खर्च उतना ही आता है, जितना पूरे आठ सैंपल के लिए आता है। कभी-कभी किसी वजह से टेस्ट रिपीट भी करना पड़ता है। ऐसे में खर्च और बढ़ जाता है।

सीक्वेंसिंग के पहले और बाद कई स्टेप्स होते हैं। जैसे डीएनए को निकालना, आरएनए से डीएनए में कन्वर्ट करना, जीनोम के फ्रेक्शन कर लाइब्रेरी प्रिपरेशन करना। जिस कारण रिपोर्ट आने में करीब 8-10 दिन का समय लग जाता है।

बहरहाल दून मेडिकल कालेज में अभी मात्र एक सैंपल होने के कारण इसकी जीनोम सीक्वेंसिंग नहीं हो पाई है। प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना का कहना है कि यह जन स्वास्थ्य से जुड़ा मामला है। ऐसे में अन्य सैंपल का इंतजार नहीं कर सकते। स्टाफ को सैंपल लगाने के लिए कह दिया है।

नष्ट कर दिया सैंपल

चकराता रोड निवासी 77 वर्षीय बुजुर्ग के सैंपल की भी जीनोम सीक्वेंसिंग नहीं हो पाई है। संबंधित अस्पताल को जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए कहा गया तो पता लगा कि कोरोना जांच के लिए सैंपल दिल्ली भेजा गया था। लैब ने कोरोना की रिपोर्ट देकर सैंपल नष्ट कर दिया।

जिला सर्विलांस अधिकारी डा. सीएस रावत का कहना है कि स्पष्ट निर्देश हैं कि हर पॉजिटिव सैंपल की अनिवार्य रूप से जीनोम सीक्वेंसिंग कराई जाएगी। ऐसे में अस्पताल को इसे लेकर स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। इसकी पूरी जवाबदेही अस्पताल की है।

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