उत्तराखण्ड

उत्तराखंड में महिला नीति का प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार, आधी आबादी को चाहिए आधा अधिकार

उत्तराखंड में पहली बार बनने जा रही महिला नीति का ड्राफ्ट तैयार हो गया है। प्रस्तावित ड्राफ्ट में सरकार से सिफारिश की गई है कि सभी राजनीतिक पदों पर महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू की जाए।

ड्राफ्ट में कहा गया है कि राज्य के निकायों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत पद आरक्षित हैं। हालांकि स्थानीय निकायों में निर्वाचित होकर अहम जिम्मेदारियां संभालने के दौरान उन्हें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये चुनौतियां विभागीय तकनीकी पहलुओं, उनके कार्यों में परिवार के पुरुषों के दखल, उनके प्रति अधीनस्थ पुरुषों का व्यवहार, अधिकारी-कर्मचारियों की तुलना में उनकी शैक्षणिक योग्यता एवं विभागीय कार्यप्रणाली के ज्ञान की कमी, महिलाओं को लेकर मानसिकता आदि हो सकती है।

ड्राफ्ट में कहा गया है कि विशेषरूप से ग्रामीण निकायों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को परिवार के पुरुषों पर निर्भर होते देखा गया है। ड्राफ्ट में सिफारिश की गई है कि ग्राम पंचायतों के स्तर पर महिला सभाओं का आयोजन किया जाए। जिसमें भागीदारी के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाए।

पहाड़ की महिलाओं के सामने पहाड़ जैसी चुनौतियां 

पहाड़ की महिलाओं के सामने पहाड़ जैसी चुनौतियां हैं। महिला नीति के प्रस्तावित ड्राफ्ट के मुताबिक महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता, संपत्ति का अधिकार, निर्णयों में महिलाओं की भागीदारी और महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के आंकड़ों से स्पष्ट है कि महिलाओं के सर्वांगीण विकास में यह सब चुनौतियां हैं।

केस नंबर एक

कृषि भूमि पर मिले बराबर मालिकाना हक 
17 साल की पार्वती का विवाह 25 साल के सोहन से होता है। सोहन के पास कुछ भूमि है जिस पर पार्वती 10 साल तक खेती करती है। चार बच्चों और बूढ़े सास ससुर की जिम्मेदारी भी उस पर है। उसका पति मजदूरी करता है और रोज शाम को शराब पीकर घर आता है। जो एक दिन गुस्से में आकर पार्वती को घर से निकाल देता है। मजबूर होकर पार्वती गरीबी से जूझ रहे अपने मायके में रहने लगती है। 10 साल तक उसने जिस खेत में खेती की वह आज उसका नहीं है। कृषि भूमि पर यदि उसका बराबर का मालिकाना हक होता तो उसकी यह स्थिति न होती।
केस नंबर दो
पीएचसी में मिले समुचित स्वास्थ्य सुविधाएं
पति और सास ससुर के साथ पिथौरागढ़ के दुर्गम गांव में रहने वाली कमला का पहला प्रसव था। उसे तकलीफ शुरू हुई तो आशा कार्यकर्ता ने डॉक्टर से जांच कराने के लिए कहा, लेकिन उसके गांव से मुख्य सड़क तीन किलोमीटर ऊंचे नीचे रास्ते की दूरी तय करने के बाद थी। जिसे दो लोगों ने डोली में बैठाकर सड़क तक पहुंचाया। इसमें करीब एक घंटा समय लगा। जिसके बाद उसे 108 एंबुलेंस से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया, लेकिन डॉक्टर और अल्ट्रासाउंड मशीन न होने से उसे जिला अस्पताल ले जाने को कहा गया। दो घंटे का सफर तय कर जिला अस्पताल पहुंची कमला को हल्द्वानी रेफर किया गया। जो पिथौरागढ़ से सात से आठ घंटे का सफर था। गरीब परिवार के पास तत्काल हल्द्वानी जाने का कोई विकल्प नहीं था। दूसरे दिन वैन बुक करके उसे हल्द्वानी ले जाया जा रहा था, लेकिर रास्ते में अत्यधिक रक्तस्राव व पीड़ा से उसने रास्ते में दम तोड़ दिया।

राज्य महिला आयोग की ओर से ड्राफ्ट तैयार किया गया है, जो कैबिनेट में आएगा। ड्राफ्ट को लेकर आठ दिसंबर को अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक रखी गई है।

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