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आज के दौर में शिक्षा का डिजिटलीकरण , शिक्षा का बदलता स्वरूप और उसके प्रभाव

देहरादून से वीएस चौहान की रिपोर्ट

पिछले दिनों  कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया में जहां लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। लोगों को लॉक डाउन का सामना करना पड़ा।और  लोक डाउन अनलॉक होने पर दुनिया के लोगों का लाइफ स्टाइल में परिवर्तन आया है। व्यापार का स्वरूप बदला है।इसी प्रकार शिक्षा का भी स्वरूप धीरे-धीरे बदल रहा है। हालांकि पिछले दिनों नई शिक्षा नीति की घोषणा की गई।वह कब तक लागू होती है। यह अलग सवाल है।लेकिन लॉकडाउन के समय में शिक्षा के तौर तरीके बदले हैं ।शिक्षा का डिजिटलीकरण हो रहा है।अगर पुराने समय में चले जाएं।पहले शिक्षा के लिए आश्रम व्यवस्था थी।

उसके बाद गुरुकुल व्यवस्था थी जो शिक्षा के लिए गुरुकुल व्यवस्था  आज भी है। एक जमाना ऐसा भी था तब उस जमाने में शिक्षा पाने के लिए लोग संघर्ष करते थे।आज की तरह सुविधाएं नहीं थी। शिक्षा प्राप्त करने वाले उस समय दीए की रोशनी में, लैंप की रोशनी,में यहां तक स्ट्रीट लाइट की रोशनी में भी अपनी पढ़ाई क्या करते थे।सुना जाता है एपीजे अब्दुल कलाम जो हमारे देश के साइंटिस्ट थे। वह शिक्षा ग्रहण  के लिए अखबार बेचा करते थे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में सुना जाता है उन्होंने अपनी पढ़ाई स्ट्रीट लाइट में भी की। ऐसे अनेक लोग हैं जिन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए बहुत संघर्ष किया। लेकिन बदलते वक्त के साथ शिक्षा का स्वरूप भी बदला है। लोक डाउन अनलॉक होने के बाद शिक्षा का डिजिटलीकरण हुआ है। आजकल ऑनलाइन शिक्षा का चलन जारी है।

लेकिन भारत में सभी लोगों के पास ऑनलाइन की सुविधा नहीं है। बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है। जिनके पास Android फोन नहीं है। जिनके पास लैपटॉप नहीं है। बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की जिनके पास नेट की सुविधा नहीं है। ऐसे में सिर्फ शहरी क्षेत्रों को छोड़ दें। जहां बच्चे ऑनलाइन सुविधा प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन शहरों में भी काफी संख्या ऐसे लोगों की है।जिनके पास एंड्राइड फोन, लैपटॉप और नेट की सुविधा नहीं है ।अगर ऐसा ही चलता रहा तो डिजिटलीकरण के कारण  दो तरह की शिक्षा प्राप्त करने वाले हो जाएंगे। एक वह बच्चे होंगे  जिनके पास लैपटॉप एंड्राइड फोन  नेट की सुविधा नहीं है।  एक वह शहर में पढ़ने वाले बच्चे जो नेट फोन लैपटॉप की सुविधाएं कारण ऑनलाइन  शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। इसका नतीजा यह होगा होगा कि दोनों तरह के बच्चों में शिक्षा के स्तर का अंतर आ जाएगा।लेकिन हरियाणा प्रदेश ने एक नई शुरुआत की है ।जहां 2018 में हरियाणा का नुहू जिला  शिक्षा के मामले में  सबसे पिछड़ा जिला माना जाता था।लेकिन  आज के दौर में  हरियाणा में  मोहल्ला पाठशाला के माध्यम से शिक्षा शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया है।

यह योजना  उन बच्चों के लिए बेहद लाभ कारी है जिन बच्चों के पास  ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा हासिल नहीं है। मोहल्ला पाठशाला की योजना में 15-15 बच्चों के ग्रुप बनाए गए हैं। यह बच्चे  कोरोना वायरस पर सुरक्षा के साथ  मास्क पहनकर,  डिस्टेंस का पालन करते हुए  शिक्षा प्राप्त करते हैं। इसमें  कक्षा  1 से 8 तक के बच्चों को जोड़ा जा रहा है। इस योजना में अपने अनेक गांव के बच्चों को अब तक लगभग  4300  बच्चों को जोड़ा गया है ।आगे मोहल्ला पाठशाला की योजना के अंतर्गत 50000 बच्चों को जोड़ने का टारगेट है।इसमें पेशेवर  शिक्षकों की कमी के कारण अब तक  246 कार्यकर्ताओं को जोड़ा गया है।  जो बच्चों को शिक्षा देते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि डिजिटलीकरण की सुविधाओं से जो वंचित बच्चे है  वह मोहल्ला पाठशाला के माध्यम से  शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। ऐसे बच्चों के लिए एक ही नई पहल है। शायद इस पद्धति को  दूसरे प्रदेश के गांव के इलाकों में भी अपनाया जाए । जहां पर नेट की सुविधा नहीं है ।

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